« سر هرمس مارانا »
شوالیه‌ی ناموجود



2014-06-12



«هیچ‌وقت» خانم لیلا قاسمی حکایت دو آدم است از دو نسل مختلف که از یک پیش‌ازظهر تا پاسی از شب را در جوار هم طی می‌کنند. در یک جغرافیای واحد، یک خانه. آدم‌هایی که دلایل زیادی داشتند برای دوری، تنفر حتا، از هم، طی یک تاریخ کم‌وبیش بیست‌ساله. ضرورت ژانر ایجاب می‌کند که ته داستان این دو آدم به جای مشترکی برسند طی سفر. سفری که البته در جغرافیا نیست، در تاریخ، در تاریخ این دو آدم اتفاق می‌افتد. رجوع به خاطره‌های مشترک قدیمی، به دردناک‌ترین‌های‌شان حتا، بازگشودن‌شان، در نهایت صلح و آرامش به دنبال می‌آورد.

تا این‌جا ترغیب‌تان نکردم به خواندن این رمان. از این‌جا به بعد اما می‌‌خوام بگویم که چه‌طور با یک روایت زنانه‌ی معرکه سروکار دارید از خاطره‌ی دهه‌ی شصت و جنگ و مدرسه و بمباران و مهاجرت حتا. از همه‌ی عناصری که کم‌وبیش شکل‌دهنده‌ی هویت ما آدم‌های در آستانه‌ی چهل‌سالگی‌ست. از جای‌گرفتن درست این‌ها کنار هم و چیدمان و ریتم معقول و حساب‌شده و مرتب خرده‌قصه‌هایی که ریشه‌شان در گذشته است. از رازگشایی‌ای که آرام‌آرام و با طمانینه اتفاق می‌افتد طی رمان. از زبان خوانا و روان و دقیق نویسنده. دست‌اندازهای اول کتاب را که رد کنید، همان‌جاهایی که زبان نویسنده دچار پرده‌پوشی‌‌ها و نگفتن‌های عمدی بوده و کمی بازی‌گوشی کرده برای گیج‌کردن خواننده (مثلن همین که طی صفحات اول، باید بگردید گاهی تا مراجع ضمیرها را، گوینده‌ی جمله‌ها را پیدا کنید) بعد انگار قلق قضیه دست خود نویسنده هم آمده. جاده‌اش هم‌وار می‌شود. جوری که داستان را یک‌سره تا آخر می‌روید. یک جاهایی دردتان می‌گیرد، از شباهت‌ها، از تصویرهایی که ساخته و گیرتان انداخته. یک‌ جاهایی می‌بینید چقدر این راوی را می‌فهمید. چقدر نزدیک‌تان نشسته. بعد، بعد دچار مساله‌ی مهاجرت‌های اجباری می‌شوید. دچار قضاوت. بعدتر همین قضاوت‌تان به چالش کشیده می‌شود. بعدتر می‌بینید چقدر شخصیت خانم‌ناظم را دارید می‌فهمید. (هرچند هنوز هم عاشقیت‌ش به‌نظرم نچسب و زیادی‌ست) می‌بینید چه‌قدر نایاب و گرم و واقعی‌ست روایت رابطه‌ی دخترک و پسرک در کتاب. بی‌سانسوری مطلوبی هم دارد کلن.

خیلی «اسپویل»تان نکنم. ماجرا ماجرای رویارویی بی‌تاست بعد قریب به بیست‌سال، با ناظم دوران مدرسه‌اش، که همسایه‌ی نزدیک‌شان بوده، رفت‌وآمد داشتند خانوادگی، آن‌هم زیاد، که مادر پسری بود که تمام بچه‌گی‌شان با هم گذشته و بعد، امید، پسرک، برای پرهیز از جنگ، از ایران رفته. فرستاده شده.

کتاب اول (اگر اشتباه نکنم که اولی‌ست) خانم قاسمی لب‌ریز است از گذشته و آدم خیال می‌کند که گذشته‌ی مشترک خودش و خیلی‌ها. مثل هر کتاب اول دیگری غنی‌ست و راوی خیلی‌جاها برای آدم منطبق می‌شود با نویسنده. جوری که آدم نگران کتاب دوم بشود.

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